तीन सौ साल पहले संभालते थे गुलेर रियासत का ताज, आज भी कर रहे दुनिया भर के कलाप्रेमियों के दिलों पर राज

तीन सौ साल पहले संभालते थे गुलेर रियासत का ताज, आज भी कर रहे दुनिया भर के कलाप्रेमियों के दिलों पर राज
विनोद भावुक/ कांगड़ा
यह रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानी है 18वीं शताब्दी में पहाड़ी चित्रकला को वैश्विक पहचान दिलवाने के लिए इतिहास में कलाप्रेमी नायक के रूप में दर्ज गुलेर रियासत के राजा गोवर्धन चंद की। गोवर्धन चंद दुनिया के इकलौते राजा हुए, जो खुद भी चित्रों में अमर कर हो गए। तीन सौ साल बाद भी चित्रों के जरिये वे दुनिया भर के कलाप्रेमियों के दिलों पर राज कर रहे हैं।
अमेरिका के बोस्टन म्यूज़ियम ऑफ फाइन आर्ट्स में ‘Sri Raja Govardhan Chand of Guler’ शीर्षक से एक चित्र संग्रहित है। चित्र में राजा एक झरोखे में बैठा हुआ है। 1770 के आस- पास का यह चित्र नैनसुख परिवार का बनाया बताया गया है। पाकिस्तान के लाहौर में स्थित पंजाब म्यूज़ियम में ‘Govardhan Chand of Haripur-Guler’ शीर्षक से एक चित्र संग्रहित है, जो 18वीं शताब्दी के मध्य का है।
म्यूज़ियम जहां धरोहर हैं राजा के चित्र
गुलेर के चित्रकारों ने परोपकारी और कला प्रेमी राजा गोवर्धन चंद के कई चित्र बनाए, जो कला के इतिहास में अमर हो गए। सालार जंग म्यूज़ियम हैदराबाद में पहाड़ी चित्रकला की विविध शैलियों का संग्रह है, जिसमें गुलेर और कांगड़ा शैली की कलाकृतियां भी शामिल हैं। चंडीगढ़ म्यूज़ियम में राजा गोवर्धन चंद के कई चित्र संग्रहित हैं, जिनमें उन्हें विभिन्न मुद्राओं में दर्शाया गया है।
राजा का दरबार, कला का स्वर्णयुग
राजा गोवर्धन चंद का दरबार उस युग की जीवंत संस्कृति का केंद्र था। दरबार में कविता, संगीत, चित्रकला और धार्मिक आयोजनों का निरंतर प्रवाह रहता था। राजा ने कलाकारों को संरक्षण दिया और समर्पित वातावरण भी तैयार किया। चित्रकारों को आवास, आर्थिक सहायता, श्रेष्ठ सामग्री और स्वतंत्रता दी गई। उन्होंने एक प्रकार की ‘राजकीय चित्रशाला’ की स्थापना की, जहां गुरु-शिष्य परंपरा के तहत चित्रकला का विस्तार हुआ।
जब मुग़ल साम्राज्य का पतन हो रहा था, तब अनेक चित्रकारों को राजा गोवर्धन चंद ने शरण दी और उनकी कलाओं को गुलेर शैली में आत्मसात किया। गुलेर और आगे चलकर कांगड़ा स्कूल की चित्रकला में मुग़ल बारीकियां और राजस्थानी रंग योजना का सुंदर समन्वय हुआ।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत
राजा गोवर्धन चंद के संरक्षण में बनी चित्रकृतियां भागवत पुराण, गीत गोविंद, रामायण और नायिका-भेद जैसे विषयों पर आधारित थीं। चित्रों में राधा-कृष्ण की प्रेम कहानियां और भक्ति रस भी झलकता है। इन चित्रों में स्थानीय जन जीवन, नदियां, वृक्ष, पशु-पक्षी और स्थानीय संस्कृति की गहरी छाप देखी जा सकती है।
राजा गोवर्धन चंद सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। उन्होंने कला को व्यक्तिगत रुचि की वस्तु नहीं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बनाया। उनकी नीतियां आज भी कला संरक्षण के क्षेत्र में आदर्श मानी जाती हैं। गुलेर से शुरू हुई चित्रकला की पुरातन परंपरा आज कांगड़ा चित्रकला के रूप में विश्व विख्यात है और गुलेर का सांस्कृतिक मानचित्र पर विशिष्ट स्थान है।
हिमाचल और देश-दुनिया की अपडेट के लिए join करें हिमाचल बिज़नेस
https://himachalbusiness.com/yashpal-nirmal-is-the-pioneer-of-dogri-creation-his-dogri-childrens-novel-chhuttiyan-has-been-translated-and-published-in-27-languages/