साक्षरता की मशाल : डिनक में मदरसा नहीं होता तो एमएससी न कर पाती माजिद अली की चारों बेटियां

साक्षरता की मशाल : डिनक में मदरसा नहीं होता तो एमएससी न कर पाती माजिद अली की चारों बेटियां
हिमाचल बिज़नेस/ सुंदरनगर
1990 के दशक के बात है। मंडी जिला के सुंदरनगर उपमंडल के मुस्लिम बहुल गांव डिनक के माजिद अली अपनी बेटियों की शिक्षा को लेकर खासे चिंतित थे, क्योंकि उनके गांव में सिर्फ प्राथमिक पाठशाला ही थी। साल 1994 में डिनक खोले गए मदरसे में मुस्लिम लड़कियों को उच्च शिक्षा देने की पहल हुई और माजिद अली की चारों बेटियां एमएससी कर गईं।
तीन दशक से मिसाल बना है मदरसा
डिनक का यह मदरसा अपनी मॉडर्न शिक्षा के लिए पिछले 30 सालों एक मिसाल बना हुआ है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को समर्पित इस मदरसे में संस्कृत के श्लोकों के साथ हिंदी, ऊर्दू ,अंग्रेजी और विज्ञान उसी तरह से पढ़ाया जाता है, जिस तरह से सरकारी स्कूलों में बोर्ड का सिलेबस पढ़ाया जाता है।
साल 1994 में इलाके में शिक्षा और साक्षरता बढ़ाने के शुरू हुआ यह मदरसा बेटी पढ़ाओ के नारे को भी अमलीजामा पहनाने में कामयाब हुआ है। यह मॉडर्न हाईटेक स्कूल है, जो हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। बेशक मुस्लिम बहुल गांव होने की वजह से आस पास के इलाके में इसे मदरसा कहा जाता है।
मदरसे में गूंजते संस्कृत के श्लोक
यहां पर हर समुदाय के बच्चे पढ़ने आते हैं। अधिकतर शिक्षक और अध्यापिकाएं हिन्दू है। यहां बच्चे उर्दू के साथ संस्कृत के श्लोकों को भी कंठस्थ करते है। स्कूल की संस्कृत की अध्यापिका वीना कुमारी बताती हैं कि संस्कृत को सामान्य विषय की तरह पढ़ाया जाता है। स्कूल कमेटी के चेयरमैन नूर अहमद नदवी बताते हैं कि आमतौर पर मुस्लिम अपनी बेटियों को प्राथमिक स्कूल तक ही पढ़ाते थे, मगर 1994 में इस स्कूल के बनने के बाद मुस्लिम बेटियां उच्च शिक्षा में पहुंची। डॉक्टर इंजीनियरिंग के साथ पीएचडी भी कर रही है। यहां पर उर्दू को सिर्फ मजहबी शिक्षा के पठन-पाठन के लिए एक पीरियड दिया गया है।
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