Tribal Painter : सुखदास की पेंटिंग्स में रोरिक,व सोभा सिंह

Tribal Painter : सुखदास की पेंटिंग्स में रोरिक,व सोभा सिंह

विनोद भावुक, केलंग

यह  प्रेरक कहानी कबायली क्षेत्र के उस महान Tribal Painter सुखदास  की है, जिसके चित्रों में अपने दौर के दो महान चित्रकारों की शैली की झलक दिखाई देती है। वर्ष 1930 में विश्व विख्यात चित्रकार निकोलोई रेरिख लाहुल आए। चित्रकला के प्रति आकर्षित बालक सुखदास ने महान रूसी कलाकार के चित्रों को देखा और उस दार्शनिक चित्रकार का कला-संसार उसके लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया। Tribal Painter सुखदास  संत चित्रकार सरदार सोभा सिंह की चित्रकला भी बहुत प्रभावित रहे और कई बार अन्द्रेटा जाकर उनसे मुलाकातें कीं । एक सच्चे शिष्य की तरह वे सोभा सिंह को चित्रकारी करते देखते और उनकी कला को समझने की कोशिश करते। यही कारण है कि सुखदास के कला सृजन  में निकोलाई रेरिख और सरदार सोभासिंह दोनों के प्रभाव को पढ़ा जा सकता है। उनके पोट्रेट्स में सरदार सोभा सिंह और पेंटिंग्स में निकोलोई रेरिख की छाप रही। उन्होंने अपनी निरंतर साधना से कई खूबसूरत कलाकृतियों को जन्म दिया।

रोरिक को माना आध्यात्मिक गुरु

यह  प्रेरक कहानी कबायली क्षेत्र के उस महान Tribal Painter सुखदास  की है, जिसके चित्रों में अपने दौर के दो महान चित्रकारों की शेली की झलक दिखाई देती है। वर्ष 1930 में विश्व विख्यात चित्रकार निकोलोई रेरिख लाहुल आए।

Tribal Painter सुखदास का चित्रकार निकोलाई रेरिख से सीधा सम्पर्क तो नहीं बन पाया, लेकिन कला के क्षेत्र में सुखदास उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मान कर चित्रकला की दुनिया में उड़ान भरी। वे बड़ी निकटता से रेरिख के चित्रों का अध्ययन-मनन करते रहे हैं तथा उनके अर्थ, मर्म, रंग-योजना तथा तूलिका की खूबियों को समझने का प्रयास किया। Tribal Painter सुखदास के बनाए  चित्रों में लाहुल के हिम-मण्डित गिरिश्रृंगों, उपत्यकाओं और अधित्यकाओं को देखा जा सकता है।

Tribal Painter : 1974 से शुरू हुआ प्रदर्शनियों का सिलसिला

Tribal Painter सुखदास  संत चित्रकार सरदार सोभासिंह की चित्रकला भी बहुत प्रभावित रहे और कई बार अन्द्रेटा जाकर उनसे मुलाकातें कीं । एक सच्चे शिष्य की तरह वे सोभा सिंह को चित्रकारी करते देखते और उनकी कला को समझने की कोशिश करते। यही कारण है कि सुखदास के कला सृजन  में निकोलाई रेरिख और सरदार सोभासिंह दोनों के प्रभाव को पढ़ा जा सकता है। Tribal Painter सुखदास का चित्रकार निकोलाई रेरिख से सीधा सम्पर्क तो नहीं बन पाया, लेकिन कला के क्षेत्र में सुखदास उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मान कर चित्रकला की दुनिया में उड़ान भरी। वे बड़ी निकटता से रेरिख के चित्रों का अध्ययन-मनन करते रहे हैं तथा उनके अर्थ, मर्म, रंग-योजना तथा तूलिका की खूबियों को समझने का प्रयास किया। Tribal Painter सुखदास के बनाए  चित्रों में लाहुल के हिम-मण्डित गिरिश्रृंगों, उपत्यकाओं और अधित्यकाओं को देखा जा सकता है

Tribal Painter सुखदास की एकल प्रदर्शनियों का सिलसिला वर्ष 1974 में आरम्भ हुआ। उन्होंने पहली बार  केलंग में ग्रीष्मोत्सव के अवसर पर  चित्र प्रदर्शनी आयोजित की ।  साल 1975  में सुखदास ने शिमला के टाउन हॉल में अपने चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित की। 24 वर्षों के अंतराल के बाद साल  1999 में हिमाचल प्रदेश भाषा एवं संस्कृति विभाग के सहयोग से सुखदास ने पुनः  शिमला  के गेयटी थियेटर में  प्रदर्शनी आयोजित की । साल  2000 में उनकी चित्रकला को नई पहचान मिली जब रूसी दूतावास के सहयोग से लाहुल के इस अल्प ज्ञात चितेरे के चित्रों को दिल्ली में प्रदर्शित किया गया।

प्रदर्शनी में शामिल हुए रूस के राजदूत

यही कारण है कि सुखदास के कला सृजन  में निकोलाई रेरिख और सरदार सोभासिंह दोनों के प्रभाव को पढ़ा जा सकता है। उनके पोट्रेट्स में सरदार सोभा सिंह और पेंटिंग्स में निकोलोई रेरिख की छाप रही। उन्होंने अपनी निरंतर साधना से कई खूबसूरत कलाकृतियों को जन्म दिया।

Tribal Painter सुखदास की निकोलाई रेरिख को समर्पित इस प्रदर्शनी में कलाकार द्वारा चित्रांकित हिमालय के दिव्य स्वरूप को प्रकट करती 41 कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी में भारत में रूस के राजदूत एम. अलेक्जेंडर की उपस्थिति विशेष रही, जबकि तत्कालीन केन्द्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री श्री शान्ता कुमार ने इस प्रदर्शनी का शुभारंभ  किया। साल 2001  में  इंडियन अकादमी ऑफ फाइन-आर्ट्स अमृतसर में उनके चित्रों की  एकल प्रदर्शनी आयोजित हुई। संत कलाकार सरदार सोभा सिंह की जन्मशती के अवसर पर आयोजित यह प्रदर्शनी उनके आत्मीय शिष्य की तरफ से एक श्रद्धांजलि थी।

अटल ने किया प्रदर्शनी का शुभारंभ

Tribal Painter सुखदास की निकोलाई रेरिख को समर्पित इस प्रदर्शनी में कलाकार द्वारा चित्रांकित हिमालय के दिव्य स्वरूप को प्रकट करती 41 कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया।  Tribal Painter सुखदास की एकल प्रदर्शनियों का सिलसिला वर्ष 1974 में आरम्भ हुआ। उन्होंने पहली बार  केलंग में ग्रीष्मोत्सव के अवसर पर  चित्र प्रदर्शनी आयोजित की ।  साल 1975  में सुखदास ने शिमला के टाउन हॉल में अपने चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित की।

साल  2002 में   में Tribal Painter सुखदास के  चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई। वर्ष 2003 में  रेरिक आर्ट सोसाइटी ने  रेरिख आर्ट गैलरी नग्गर में उनकी कलाकृतियों की एकल प्रदर्शनी आयोजित की गई जो उनके आध्यात्मिक गुरु’ के प्रति स्मरणांजलि थी।  भारत में रूस के राजदूत अलेक्जेंडर एन. कदाकिन ने इस प्रदर्शनी का उद्घाटन कर कलाकार को सम्मानित किया । साल  2006 में दिल्ली में आयोजित उनकी एकल प्रदर्शनी का शुभारंभ अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। साल 200 7 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने उन्हें हिमाचल प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी सम्मान दिया।

छोड़ गए चित्रों की बड़ी विरासत

साल  2002 में  लालचन्द प्रार्थी कला केन्द्र कुल्लू में Tribal Painter सुखदास के  चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई। वर्ष 2003 में  रेरिक आर्ट सोसाइटी ने  रेरिख आर्ट गैलरी नग्गर में उनकी कलाकृतियों की एकल प्रदर्शनी आयोजित की गई जो उनके आध्यात्मिक गुरु' के प्रति स्मरणांजलि थी। 

15 जून 1929 को पिता राम भगत और  माता छेतन के घर थोलंग गांव में पैदा हुए सुखदास ने आरंभिक पढ़ाई स्थानीय स्तर पर कर राजकीय  प्रशिक्षण विद्यालय करनाल से जूनियर वनेक्यूलर शिक्षक का प्रशिक्षण प्राप्त कर साल 1949 में बतौर शिक्षक अपने करियर की शुरुआत की। अध्यापन के साथ कला के सृजन को समर्पित रहे शालीन स्वभाव के इस बेहतरीन चित्रकार का 1 जून 2016 को 87 साल की उम्र में निधन हो गया। अपने पीछे वे चित्रकला की एक बड़ी विरासत छोड़ गए।

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