छेरिंग दोरजे : एनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिमालय
हिमालय, तिब्बत और मध्य एशिया की संस्कृति और इतिहास की गहरी समझ, 200 दर्रों को पैदल पार करने का रिकॉर्ड
हिमाचल बिजनेस/ केलांग
छेरिंग दोरजे। क्या इस नाम से वाकिफ हैं आप लोग? कुछ होंगे शायद, कुछ नहीं। जो वाकिफ हैं वो जानते हैं कि साहित्य के क्षेत्र में इस नाम का क्या कद और क्या अहमियत है। बेशक 13 नवंबर 2020 को वे इस संसार को छोड़ गए, लेकिन उनका काम आने वाली पीढ़ियों को राह दिखाता रहेगा।
छेरिंग दोरजे एनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिमालय के नाम से जाने जाते हैं। ये वही शसियत है जिन्होंने हिमालय के लगभग 200 दर्रों को पैदल पार किया, उन भौगोलिक परिस्थितियों को जिया।
इतिहास संकलन का जुनून
छेरिंग दोरजे ने पूरे हिमालय, तिब्बत और मध्य एशिया के इतिहास को एक जुनून की तरह संकलित करके बड़े ही करीने से अपने स्मृतिपटल में सजा रखा।
न केवल वहां का इतिहास, बल्कि विविध लोकसंस्कृतियों, देव समाज की मान्यताओं, परंपराओं, विविध धर्मों व भौगोलिक परिस्थितियों के अंतरंग साहित्य को अपने मस्तिष्क में सहेज कर रखा।
पत्रकारिता के लिए अनजान रहे दोरजे
छेरिंग दोरजे वास्तव में लाहौल-स्पीति के विख्यात इतिहासकार के रूप में जाने जाते थे। लाहौल के इतिहास की अकिंचन से अकिंचन कडिय़ों के बारे में विस्तार से जानते थे।
अचरज का विषय है ऐसा महान व्यक्ति जिसके पास ज्ञान और इतिहास का इतना व्यापक भंडार था, उस पर किसी पत्रकार ने कोई स्टोरी क्यों नहीं की और उनके जीवन को लोगों के समक्ष प्रस्तुत क्यों नहीं किया।
गाहर घाटी में पैदा हुए थे दोरजे
छेरिंग दोरजे का जन्म 10 अप्रैल, 1936 को लाहौल-स्पीति की गाहर वैली के अंतर्गत गांव गुसयार में माएज परिवार में हुआ था। उस समय लाहौल के लोगों का मुख्य पेशा खेतीबाड़ी और भेड़पालन था। चूंकि, गाहर घाटी के अधिकतर लोग तिब्बतियन बौद्ध मान्यताओं का पालन करते हैं, तो छेरिंग दोरजे के परिवार के लोग भी उन्हीं मान्यताओं को मानते आ रहे थे।
उनके परिवार के लोगों में कुछ सदस्य पूर्व से ही बौद्ध परंपराओं के अनुसार बौद्ध ध्यान, योग व साधना का अयास करते रहे थे।
जोकचेन योग से रहे ऊर्जावान
व्याख्याकार से जनसंपर्क अधिकारी बने छेरिंग दोरजे बेहद सरल व मिलनसार व्यक्तित्व के स्वामी थे। उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी अपनी जिज्ञासु प्रवृति और ज्ञान अर्जित करने के लिए उतने ही ऊर्जावान रहे।
वे खुद को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए जोकचेन योग विधि का अनुसरण करते रहे। छेरिंग दोरजे के करीब से जानने वाले लोग उन्हें जीता जागता पुस्तकालय मानते थे।
तिब्बत में बौद्ध धर्म की शिक्षा
छेरिंग दोरजे ने अपनी आरंभिक शिक्षा केलांग के स्कूल में प्राप्त की और आगे की शिक्षा उर्दू भाषा में जारी रखी। परंतु गाहर घाटी की एक परंपरा और स्पीति के बुद्ध धर्म के अनुयायी परिवारों के अनुसार घर का एक सदस्य बुद्ध धर्म को समर्पित होकर लामा बनता है। उसी की अनुपालना करते हुए छेरिंग दोरजे भी बुद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए तिब्बत चले गए। वहां तिब्बत के प्राचीन बौद्ध मठ थोलिंग में शिक्षा ग्रहण करनी आरंभ की।
तिब्बती भाषा के साथ ‘महामुद्रा’
बौद्ध शिक्षा के विद्यार्थी काल मे छेरिंग दोरजे ने सर्वप्रथम तिब्बती भाषा सीखी और ‘महामुद्रा’ का अभ्यास शुरू किया।
उनके जीवन की यही अवस्था और काल रहा होगा जब उनका बौद्धिक विकास का नया चरण आरंभ हुआ होगा। बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में सर्वोच्च ध्यान और अभ्यास मुद्राओं में से एक ‘महामुद्रा’ का अभ्यास ही उनके जीवन को ज्ञान रूप में एक सतत बौद्धिक विकास दे पाया।
राजनीतिक अस्थिरता के कारण देश वापसी
थोलिंग मठ से आरंभिक बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब छेरिंग दोरजे ने ‘महामुद्रा’ का अभ्यास शुरू किया।
उन्हें अगली श्रेणी के अयास के लिए सा-न्गांग-चोलिम (मध्य तिब्बत) के बुद्ध धर्म की कुछ चुनिंदा ध्यान साधना की महाशिक्षाओं के केंद्र कर्ग्यूदपा विद्यालय में जाना पड़ा।
तिब्बत पर चीन के कब्जे के कारण उपजी राजनीतिक अस्थिरताओं के कारण उन्हें बुद्धिष्ठ धर्मशास्त्र की अपूर्ण शिक्षा के साथ वापस भारत आना पड़ा।
जन संपर्क अधिकारी का रोल
हिंदी, पहाड़ी, लाहुली, स्पिति और तिब्बती भाषा का विस्तृत ज्ञान और विस्तारपूर्वक अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक जानकारियां होने के कारण छेरिंग दोरजे की तुरंत ही लाहौल-स्पीति के उपायुक्त कार्यालय में तिब्बती भाषा के व्याख्याकार की नौकरी मिल गई। वर्षों तक इस पद पर सेवाएं देने के बाद उन्हें जनसंपर्क अधिकारी बना दिया गया।
देश-विदेश में शोधपत्र प्रस्तुत
छेरिंग दोरजे ने अपने जीवनकाल का अधिकतर समय साहित्य और विभिन्न ज्ञान को एकत्रित करने और विभिन्न संस्कृतियों के शोध करने में लगा दिया।
उन्होंने देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, साहित्यिक व सांस्कृतिक संगोष्ठियों में शोधपत्र प्रस्तुत किए। रशिया, विएना और कई अन्य देशों में उन्हें तिब्बती, लाहुली और हिंदू धर्म पर व्यायान प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाता रहा है।
हिमालयी बोलियों पर शोध करने आए देश-विदेश से बहुत से छात्रों को उनके शोध में मार्गदर्शन करने में उनका अतुलनीय सहयोग रहा है। उन्होंने 40 से 50 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग लिया है।
रोरिख के अध्ययन में भूमिका
साहित्य में अगाध रुचि और खोजी प्रवृति के कारण छेरिंग दोरजे के जीवन में स्वत: ही एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू और जुड़ गया।
रशिया के विख्यात कालाकार, एवं दार्शनिक निकोलस रोरिख के परिवार से उनकी मित्रता हुई। छेरिंग दोरजे निकोलस रोरिख के पुत्र जॉर्ज रोरिख के मित्र रहे हैं।
जॉर्ज रोरिख स्वयं विभिन्न लोक साहित्यों के प्रसिद्ध अन्वेषणकर्ता रहे हैं। उनकी लाहौल यात्रा का जो प्रारूप हम सबके समक्ष है वो छेरिंग दोरजे के कारण ही है।
निकोलस रोरिख के ग्रीष्मकालीन निवास रहे घर का छेरिंग दोरजे की देखरेख में जीर्णोद्धार करके फिर से रोरिख की आर्ट गैलरी के रूप में प्रतिस्थापित किया गया। 13 नवंबर 2020 को वे अंतिम यात्रा पर निकाल गए।
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