इतिहास की अनकही कहानियां : जब ब्राह्मणों ने ही नहीं खाया ब्राह्मणों के हाथ का बना भोजन, सुकेत रियासत में 100 साल तक चला मुक़द्दमा,

इतिहास की अनकही कहानियां : जब ब्राह्मणों ने ही नहीं खाया ब्राह्मणों के हाथ का बना भोजन, सुकेत रियासत में 100 साल तक चला मुक़द्दमा,
हिमाचल बिजनेस
रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियों के प्लेटफॉर्म हिमाचल बिजनेस पर ‘इतिहास की अनकही कहानियां’ की श्रन्खला में आज कहानी सुकेत रियासत के उस मुक़द्दमे की जो सौ साल तक चलता रहा।
एक ऐसा मुकदमा, जिसकी सुनवाई 100 साल से भी ज्यादा चली। यह मामला था छूआछूत का, जो केवल आम लोगों में ही नहीं, बल्कि खुद ब्राह्मण समुदाय के भीतर खड़ा हुआ था।
इस मुकदमे की पूरी कहानी हमें मिली है पांगणा से खोजी गई एक 12 पन्नों की पांडुलिपि से। मंडयाली नागरीय टांकरी लिपि में लिखी इस पांडुलिपि से साफ होता है कि सुकेत रियासत के राजा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ खड़े थे और छूआछूत को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते थे।
धार्मिक आयोजन में पेश आया प्रसंग
साल 1791 था। सुकेत रियासत के राजा विक्रम सेन के समय एक धार्मिक आयोजन हुआ। इस समारोह में करसोग, पांगणा, चुराग और ममेल क्षेत्र के ब्राह्मण शामिल हुए। समस्या तब खड़ी हुई, जब खेतीबाड़ी करने वाले ग्रामीण ब्राह्मणों ने भात (चावल) पकाकर सबको परोसा।
लेकिन नगरों में रहने वाले उच्च कुलीन ब्राह्मणों ने “हम श्रेष्ठ हैं” का तर्क देकर ग्रामीण ब्राह्मणों के हाथ का भोजन खाने से साफ मना कर दिया। मामला राजा तक पहुँचा। राज दरबार में सुनवाई हुई और फैसला आया— “नागरीय ब्राह्मण ग्रामीण ब्राह्मणों के हाथ का भात खाएंगे, भेदभाव नहीं चलेगा।”
पाँच राजाओं के दरवार में सुनवाई
लेकिन उच्च कुलीन ब्राह्मणों ने राजा का आदेश मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद यह विवाद पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा। करीब एक सदी तक इस मुकदमे की सुनवाई चलती रही। इस दौरान सुकेत रियासत पर पाँच अलग-अलग शासक राज कर चुके थे।
आख़िरकार, 1893 के आसपास राजा दुष्यंत निकंदन ने बड़ा और कठोर फैसला लिया। समानता के अधिकार का विरोध करने वाले नगरों के ब्राह्मणों को कारावास में डाल दिया गया और इस विवाद का अंत हो गया।
मुक़द्दमा नहीं मिसाल बन गया फैसला
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन से जुड़े डॉ. जगदीश शर्मा बताते हैं कि यह पांडुलिपि अब सुकेत रियासत के इतिहास की धरोहर है। उनका कहना है कि यह कहानी सिर्फ एक मुकदमे की नहीं है, बल्कि इस बात की मिसाल है कि सदियों पहले भी हिमाचल की रियासतों में समानता और सामाजिक न्याय के लिए आवाज़ उठाई गई थी।
जहाँ बाकी भारत में छूआछूत सामाजिक जीवन में गहराई तक जकड़ी हुई थी, वहीं सुकेत के राजाओं ने इसे चुनौती दी और यह साबित किया कि इंसान की असली पहचान उसकी मानवता है, न कि जाति या कुल।
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