वर्षा कटोच : चौथी क्लास में पहली बार मिला मंच, नौवीं ने पढ़ते- पढ़ते दूरदर्शन पर दी प्रस्तुति, तीन दशक के बरकरार है मखमली आवाज से लोकगीतों का जादू

वर्षा कटोच : चौथी क्लास में पहली बार मिला मंच, नौवीं ने पढ़ते- पढ़ते दूरदर्शन पर दी प्रस्तुति, तीन दशक के बरकरार है मखमली आवाज से लोकगीतों का जादू
वर्षा कटोच : चौथी क्लास में पहली बार मिला मंच, नौवीं ने पढ़ते- पढ़ते दूरदर्शन पर दी प्रस्तुति, तीन दशक के बरकरार है मखमली आवाज से लोकगीतों का जादू
विनोद भावुक / धर्मशाला
चौथी कक्षा में पढ़ते हुए पहली बार मंच से ‘लौंगे गवाई आई धारा’ लोकगीत पेश करने वाली
ग्रामीण परिवेश की एक किशोरी नौवीं कक्षा तक आते-आते जालंधर दूरदर्शन पर लोक गायन और लोकनृत्य पेश कर अपनी प्रतिभा की चमक दिखा चुकी थी। साल 1992 में ‘धोबण पानीए जो चली है’ जैसे गीत ने उस कॉलेज स्टूडेंट को रातों- रात शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। सालों की साधना, सुरों में रची-बसी पहाड़ी और सामाजिक जुड़ाव ने उसे बड़ी गायिका के तौर पर स्थापित किया है।
कांगड़ा जनपद के जिला मुख्यालय से सटे एक छोटे से गांव लांझणी की वर्षा कटोच ने लोकसंगीत में वह कर दिखाया है, जो हजारों लोकगायिकाओं के लिए महज एक सपना होता है। हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक गीतों को नई जान देने वाली वर्षा कटोच को ‘हिमाचल कोकिला’ कहा जाता है।
धर्मशाला कॉलेज की प्रतिभा
6 फरवरी 1972 को नरेश चंद कटोच और माता गौतमा देवी के घर चार बहनों और एक भाई वाले परिवार में पैदा हुई वर्षा कटोच का बचपन धौलाधार की गोद में बसे गांव की गोद में बीता। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लांझणी, कल्याड़ा, चड़ी से हुई, जबकि उच्च शिक्षा पीजी कॉलेज कॉलेज धर्मशाला से की।
उन्होंने हिन्दी में एमए करने के साथ बीएड की डिग्री भी ली है।
वर्षा कटोच को संगीत की प्रेरणा अपने दादा-दादी और मां से मिली, जबकि लोकगायिका नसीम वाला और बिमला देवी ने भी उन्हें लोग गायन के लिए प्रेरित किया है। दस साल की उम्र में शुरू हुआ गायन का सिलसिला आज भी जारी है। टीसीरीज सहित कई म्यूजिक कंपनियों ने उनकी मखमली आवाज में कई लोकगीतों को रिकॉर्ड किया है।
गीतों में गूँथे लोकजीवन के रंग
वर्षा कटोच ने लोक संस्कृति के रंगों में रंगे विवाह गीत, विदाई गीत, भजन और संस्कृतिक गीत गाये हैं। उनकी कई म्यूजिक अलबम के नाम रिकॉर्ड दर्ज हुये हैं। उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन पर हिमाचली संस्कृति के रंगों को बिखेरा है। उनके गाये कई गीत आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
वर्षा कटोच ने विभिन्न सांस्कृतिक मंचों पर अपने गीतों से श्रोताओं की वाहवाही लूटी है। प्रदेश के बाहर भी उन्होंने हिमाचल की लोक संस्कृति की छटा बिखेरी है। उनके गाये गीतों में लोकजीवन के रंग, सरलता, साहस, संघर्ष और कुदरती सौंदर्य मौजूद है।
आकाशवाणी धर्मशाला की सबसे ‘चंचल’ आवाज
वर्षा कटोच डेढ़ दशक से ज्यादा समय तक आकाशवाणी धर्मशाला की चर्चित आवाज रही है, जो पहाड़ के घर- घर में पहचानी जाती है। वे साल 2001–2016 तक आकाशवाणी धर्मशाला में ‘चंचल आवाज़’ के रूप में चर्चित रहीं हैं। वे लोकसंस्कृति के संरक्षण के लिए समर्पित लोक कलाकार हैं।
वर्षा कटोच हिमाचल साक्षरता मिशन की संस्थापक सदस्य हैं और हिमाचल ज्ञान-विज्ञान समिति के माध्यम से स्कूलों में लोकसंगीत सिखाती आ रही है। वे मिड-हिमालयन प्रोजेक्ट में फ़ैसीलिटेटर की भूमिका निभा रही हैं। वे ग्रामीण महिलाओं को स्वरोज़गार से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के मिशन में जुटी रही हैं।
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Jyoti maurya

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