औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ने का हुक्म दिया तो राजा चतर सिंह ने चंबा के मंदिरों के शिखरों पर चढ़वा दी सोने की परत

औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ने का हुक्म दिया तो राजा चतर सिंह ने चंबा के मंदिरों के शिखरों पर चढ़वा दी सोने की परत
औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ने का हुक्म दिया तो राजा चतर सिंह ने चंबा के मंदिरों के शिखरों पर चढ़वा दी सोने की परत
हिमाचल बिजनेस/ चंबा
इतिहास में दर्ज है कि चंबा के शूरवीर राजा चतर सिंह ने मुगल बादशाह औरंगजेब को दी खुली चुनौती दी थी। औरंगजेब ने अपने शासनकाल में देशभर में कई मंदिरों को तोड़ दिया था। उन्होंने चंबा के प्रमुख मंदिरों को भी तोड़ने का आदेश जारी किया। चतर सिंह उस समय चंबा के राजा थे। राजा ने इस आदेश को मानने से मना ही नहीं किया, बल्कि मंदिरों के शिखरों पर सोने की परत चढ़वाकर अपना कड़ा विरोध जताया था। राजा चतर सिंह के 1664 से 1694 तक के समय को वीरता और स्वाभिमान का स्वर्णकाल कहा जाता है।
प्रसिद्ध इतिहासकार के.के. भट्टाचार्य की पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ हिमाचल’ के अनुसार, औरंगजेब ने देशभर में कई मंदिरों को ध्वस्त करवाया था। इसी क्रम में उन्होंने चंबा के प्रमुख मंदिरों को भी तोड़ने का आदेश जारी हुआ, लेकिन राजा चतर सिंह ने इन मंदिरों के शिखरों पर सोने मढ़वा कर अपने धर्म, संस्कृति और जनता की रक्षा के लिए शक्तिशाली साम्राज्य से टक्कर ली।
चंबा के राजा की दिल्ली दरबार में पेशी
औरंगजेब चंबा के राजा के इस कदम से बड़ा क्रोधित हुआ और राजा को दिल्ली दरबार में हाजिर होने का फरमान सुनाया। चतर सिंह किस्मत का धनी राजा था। इससे पहले की मुगल दरबार में उसकी पेशी होती, औरंगजेब दक्षिण भारत (दक्कन) में मराठों के साथ संघर्ष में उलझ गया और चंबा को भूल गया।
इतिहास प्रेमी चंबा रियासत की इस घटना को गर्व के साथ याद करते हैं। पुरातत्वविद् डॉ. अनिल ठाकुर के मुताबिक राजा चतर सिंह का निर्णय न केवल उनके धर्म के प्रति निष्ठा को दर्शाता है, बल्कि यह हिमालयी राज्यों की स्वायत्तता और संस्कृति के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी है।
साहसी और दिलेर राजा
राजा के इस कदम ने उन्हें न केवल स्थानीय जनता का सम्मान दिलाया, बल्कि उनके साहस और दिलेरी की एक स्थायी छवि बन गई। उस समय तक अधिकतर पहाड़ी राज्यों ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी, पर चतर सिंह ने चंबा की स्वतंत्र पहचान बनाए रखने पर जोर दिया।
चतर सिंह के शासनकाल में स्थानीय स्थापत्य कला और चित्रकला को संरक्षण और प्रोत्साहन मिला। माना जाता है कि उन्होंने कई धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का जीर्णोद्धार कराया, जिससे चंबा की ऐतिहासिक पहचान और मजबूत हुई।
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Jyoti maurya

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