जब ब्रिटिश पशु चिकित्सक विलियम मूरक्राफ्ट पर मधुमक्खियों ने किया था हमला और सिरमौर रियासत के ग्रामीणों ने बचाई थी जान

जब ब्रिटिश पशु चिकित्सक विलियम मूरक्राफ्ट पर मधुमक्खियों ने किया था हमला और सिरमौर रियासत के ग्रामीणों ने बचाई थी जान
विनोद भावुक/ धर्मशाला
दो सदी पहले अपनी हिमालय क्षेत्र की यात्रा के दौरान विलियम मूरक्राफ्ट जब सिरमौर रियासत की सीमा में थे तो मधुमक्खियों ने उन पर हमला बोल दिया था। अपने संस्मरणों में विलियम मूरक्राफ्ट लिखते हैं, ‘अपने कारवां से आगे चलकर पीपल के पेड़ के नीचे ठंडी हवा में आराम करने को रुका तो मैंने वहां मधुमक्खी के करीब दस छतों को देखा। दल के वहां पहुंचने पर मैंने उन्हें इन छतों के बारे में आगाह किया। फिर भी हमारे दल के एक युवा ने मधुमक्खियों को छेड़ा तथा उसके परिणाम हमें भुगतने पड़े। मुझे मधुमक्खी ने आंख तथा मुंह पर काटा। मैं जान बचाकर खेतों की ओर भागा जहां एक ग्रामीण ने जलाए हुए घास को घूमा कर मुझे बचाया।‘
विलियम मूरक्राफ्ट वे पहले अंग्रेज़ थे, जिन्होंने फ्रांस में पेशेवर पशु चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की थी और लंदन में एक घोड़ा अस्पताल खोला था। इंडिया कंपनी ने घोड़ों के प्रजनन में सुधार के लिए भारत में उसकी सेवाएं लीं। 1808 में वे भारत आए, 1812 में तिब्बत की यात्रा की और 1820 के दशक में हिमालय क्षेत्र की यात्रा कर मध्य एशिया के बुखारा तक पहुंचे थे। बरेली से शुरू हुई इस यात्रा में उनके पुराने दोस्त का बेटा जार्ज ट्रैवक शामिल था, जिसने ड्राफ्ट्समैन तथा सर्वेयर के रूप में स्वैच्छिक सेवाएं दी थी। ईस्ट इंडिया कंपनी में चिकित्सा के क्षेत्र में तैनात गुटरे, कुछ वर्ष पूर्व हिमालय क्षेत्र में रास्ते के सर्वेक्षण में शामिल रहे मीर इज्जत उल्ला और बरेली के एक व्यक्ति गुलाम हैदर खान थे। 12 गोरखा सैनिक इस दल की सुरक्षा के लिए इस दल के साथ थे।
पांवटा का किला था खंडहर, क्यारदा दून में बचे थे सात गांव
विलियम मूरक्राफ्ट अपने इस यात्रा अभियान के बारे में लिखते हैं कि लद्दाख की यात्रा के दौरान वर्ष 1820 में दून क्षेत्र की ओर से आते हुए यमुना नदी को पार कर सिरमौर रियासत में दाखिल हुए। यमुना के बाएं किनारे पर पांवटा स्थित था, जहां किले खंडहर मौजूद थे। इसके समीप कुछ घास की झोंपड़ियां थीं। ये झोंपड़ियां राजबन वन उनका काफिला दून यानी क्यारदा की घाटी से आगे बढ़ा था। गोरखों के अधिकार से पहले क्यारदा दून में आबादी वाले 84 गांव थे, जिनमें मात्र सात के करीब ही गांव बचे थे, जो कि बहुत खुशहाल न थे। क्यारदा दून में 280 घर थे जिनकी आबादी 600 के करीब थी।
क्यारदा में मूरक्राफ्ट मैदानी इलाके से होकर गुजरे। रास्ते में अनेक छोटी खड्डों, नदियों को पार किया जो अधिकांशतः सूखी हुई थीं। कालसी में नदी की राह को छोड़कर, चढ़ाई चढ़ जंगल की राह पकड़ी जो कि क्यारदा दून की पश्चिमी सीमा कहलाती है। इस वन क्षेत्र में अनेक चश्में तथा दलदल वाला क्षेत्र है जहां से जल एकत्रित होकर मारकंडा नदी में बहता है और कुछ जल कौशल्या नदी में जाता है। मूरक्राफ्ट तथा उसके दल ने एक उजड़े गांव ‘बकरी का बाग’ में अपना शिविर लगाया, जहां से उनका कारवां अगले दिन नाहन के लिए रवाना हुआ।
14 साल का युवा राजा, पेश किया तेंदुआ
विलियम मूरक्राफ्ट ने अपने यात्रा संस्मरण में लिखा है कि नाहन शहर फैला हुआ है और यहां ऊंचे स्थानों की अपनी विशिष्टता है। शहर के अधिकांश घर पत्थरों के बने हैं तथा यह स्थान भारत के अन्य शहरों के मुकाबले स्वच्छ तथा रमणीय नज़र आता है। इस स्थान से पहाड़ों तथा घाटियों के दृश्यवलियां मनमोहक हैं। यहां से मैदानों के दृश्य मनोहारी तथा इसके मध्य बहती मारकंडा नदी और भी खूबसूरत लगती है।
नाहन सिरमौर के राजा फतेह प्रकाश का निवास स्थान है, जो 14 वर्ष का एक युवा है जिसे राज्य की सनद लौटाई गई है। रियासत की सालाना राजस्व प्राप्ति 40,000 रुपए है। विलियम मूरक्राफ्ट लिखते हैं कि अगले दिन प्रातः प्रस्थान के समय युवा राजा एक तेंदुआ लेकर आया, जिसका शिकार पिछले दिन शहर के समीप किया गया था।

राजा पटियाला की कस्टम चैक पोस्ट
विलियम मूरक्राफ्ट ने लिखा है, हमने नाहन से अपनी यात्रा एक मार्च की तरह पश्चिमी तथा दक्षिणी दिशा की ओर आरंभ की। यह रास्ता ढलानदार तथा ऊबड़-खाबड़ था। इस ढलान पर अनेक स्थानों पर परोपकारी व्यक्तियों ने पेयजल तथा नहाने के लिए जलकुंडों का निर्माण करवाया हुआ था। रास्ता संकरा तथा चढ़ाई वाला था, जो जंगल तथा उस वक्त सूखा घास के जंगल से होकर गुजरता हुआ खेती योग्य भूमि तक पहुंचता था। यह स्थान सिख सीमा गांव डेरा कहलाता था।
विलियम मूरक्राफ्ट ने लिखा है, ‘मैंने घग्घर नदी के एक लंबे सूखे क्षेत्र को पार किया, लेकिन दल के अन्य सदस्य ट्रेवेक एक अन्य रास्ते से होकर मनीमाजरा पहुंचे। मैं नदी के बाएं किनारे बने रास्ते से होकर गुजरा। मिट्टी की पहाड़ियों के अंतिम छोर पर चांदनी किला था, जो उस दर्रे की रखवाली करता था। कुछ ही दूरी पर राजा पटियाला की कस्टम चैक पोस्ट थी। यहां पर अनार के छिलकों की खेप (पहाड़ में होने वाला जंगली अनार) कर न चुकाने के कारण बहुतायत में रखी थी। इसका उपयोग चमड़ा तथा कपड़ा रंगने के लिए किया जाता है।
पिंजौर के मकानों की दीवारों पीआर नक्काशी
विलियम मूरक्राफ्ट लिखते हैं कि यह रास्ता घग्घर नदी को पार कर एक संकरे रास्ते से गुजरते हुए पिंजौर पहुंचता है, जो एक छोटा-सा गांव है। यहां के मकानों की दीवारों पर नक्काशी किए गए पत्थर तथा चित्रकारी देखते ही बनती है। यहां बावड़ी तथा कुओं के स्तंभों पर नक्काशी को देखने से यहां की गौरवमय इतिहास तथा वैभवता का पता चलता है। यहां हिंदू मूर्तियों के भग्नावशेष बिखरे पड़े थे। इसके अलावा भवनों के अवशेष भी यहां- वहां नज़र आते थे। यहां स्थित किले को फ्रांसीसी अधिकारी एम. बारक्यून ने गिरा दिया था, जो दौलत राव सिंधिया की सेवा में था।

किले के अंदर छह बाग, इत्र के लिए गुलाब की खेती
विलियम मूरक्राफ्ट ने लिखा है कि पिंजौर के किले की अंदरूनी दीवारें यथावत खड़ी हैं, जिसके भीतर छः सीढ़ीनुमा बाग हैं। यह बाग दो सौ बीघा या छह एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैले हैं। इन बागों के लिए ऊंचे स्थान से पत्थर की पक्की नालियों में जल की आपूर्ति की जाती है। जल एक बाग से दूसरे बाग में जब जाता था तो वहां सुंदर झरने तथा फव्वारे बनाए गए हैं और एक झील भी निर्मित है। वे लिखते हैं कि जब बाग पूरे यौवन पर होता होगा तो इसकी भव्यता देखते ही बनती होगी। यह गर्मियों में ठंडक का सुकून देने वाला है।
विलियम मूरक्राफ्ट लिखते हैं कि उपरले तथा पश्चिम बाग में पूर्व निवासी किलेदार का आवास था। एक अन्य भवन बाग के मुकाबले छोटा है, लेकिन इसका निर्माण सुरुचिपूर्ण किया है तथा यहां से संपूर्ण क्षेत्र पर नज़र रखी जा सकती है। इस भवन में पटियाला के राजा के थानेदार का आवास स्थित था। बाग में आम, संतरे, सेब, अनार के पेड़ थे। इसके अलावा पॉपुलर के पेड़ लगे थे। कुछ बागों के हिस्सों में गुलाब तथा गन्ने के पौधे उगाए जाते हैं। गुलाब भी लगाया जाता है, जिससे राजा के लिए इत्र तैयार किया जाता है।


गन्ने की खेती, खेतों के किनारे मोटी घास
विलियम मूरक्राफ्ट लिखते हैं कि उनकी अगली यात्रा जंगल से होती हुई अधिकांश सूखे नदी, नालों को पार करते हुए लाहा गांव पहुंची। वहां काफिले ने लोगों को कमल ककड़ी को निकालते हुए देखा जो, उसका उपयोग सब्जी के रूप में करते थे। गांव के आस पास के किसान तब गन्ने की खेती भी करते नज़र आए। वे खेतों के किनारे मोटी घास लगाते थे, जिससे कि फसल को हिरण से बचाया जा सके। काफिले ने बूरीवाला में आम के बाग में पड़ाव लगाया। अगले दिन काफिला गांवों से होता हुआ रायपुर शहर पहुंचा। यहां नाहन के राजा के चाचा कृष्ण सिंह का निवास था। अगले दिन काफिला एक बड़े शहर रामगढ़ से होता हुआ आगे बढ़ा।
विलियम मूरक्राफ्ट के अभियानों, यात्रा विवरणों और उनके लिखे गए यात्रा वृत्तांतों को ‘The life of William Moorcroft, ‘Asian explorer and pioneer veterinary surgeon, 1767-1825’ पुस्तकों में पढ़ा जा सकता है। बता दें कि विलियम मूरक्राफ्ट के जीवनकाल में फोटोग्राफी का आविष्कार नहीं हुआ था, इसलिए उनकी कोई वास्तविक फोटोग्राफ उपलब्ध नहीं है। हालांकि उनके अभियानों और यात्राओं को दर्शाने वाले कुछ चित्र और रेखाचित्र मौजूद हैं।
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