आइरिश डांसर लोला मोंटेज़ पालकी में बैठकर शिमला माल रोड से गुजरती थी तो पलकें झपकाना भूल जाते थे अंग्रेज अफसर

आइरिश डांसर लोला मोंटेज़ पालकी में बैठकर शिमला माल रोड से गुजरती थी तो पलकें झपकाना भूल जाते थे अंग्रेज अफसर
आइरिश डांसर लोला मोंटेज़ पालकी में बैठकर शिमला माल रोड से गुजरती थी तो पलकें झपकाना भूल जाते थे अंग्रेज अफसर
विनोद भावुक/ शिमला
कहानी आइरिश डांसर एलिज़ा रोसन्ना गिल्बर्ट की, जिसे दुनिया लोला मोंटेज़ के नाम से जानती है। उसकी छवि किसी अप्सरा जैसी थी। शाम को जब वह पालकी में बैठकर शिमला के माल रोड से गुजरती थीं तो हर युवक की आंखें उसी पर अटक जाती थीं। अंग्रेज अफसर तक उसे देखकर आंखें झपकाना भूल जाते थे। मानो उसका दीदार करना ही उनके लिए जीवन की सबसे बड़ी घटना हो। उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में अंग्रेजों के बसाए हिल स्टेशन शिमला में उस समय हलचल मच गई थी, जब एक अनोखी, रहस्यमयी और अपूर्व सौंदर्य की मल्लिका यहां पहुंची थी।
अपनी सुंदरता के लिए मशहूर उस महिला के जीवन की कहानी में रोमांच, विद्रोह और ग्लैमर की परतें भी थीं। लोला मोंटेज़ का आकर्षण इतना प्रबल था कि उच्च ब्रिटिश समाज की महिलाएं भी असुरक्षित महसूस करने लगी थीं। शिमला प्रवास के दौरान तत्कालीन वायसराय की बहन एमिली ईडन ने अपनी डायरी में 8 सितंबर 1839 को लिखा है कि शिमला इन दिनों हिला हुआ है। एक श्रीमती जी यहां पहुंच गई हैं। उसकी सुंदरता की चर्चा साल भर होती रहती है।
शिमला की फिज़ाओं में लोला मोंटेज़ की परछाईयां
जहां एक महिला ने अपनी उपस्थिति भर से सामाजिक परंपराओं को चुनौती दी, सौंदर्य की परिभाषा को बदल डाला और अपने विद्रोही स्वभाव से सभी को सम्मोहित कर लिया। उस शिमला की फिज़ाओं में आज भी उसकी परछाईयां मौजूद हैं।
आज भी इतिहास प्रेमियों के बीच माल रोड और स्कैंडल प्वाइंट पर लोला मोंटेज़ की चर्चा होती है। वे न केवल शिमला के इतिहास की एक विशेष कड़ी हैं, बल्कि उन गिनी-चुनी महिलाओं में से हैं, जिन्होंने 19वीं सदी के पुरुष-प्रधान समाज में अपनी खुद पहचान बनाई, चाहे कीमत कुछ भी रही हो।
प्रेम विवाह कर आई शिमला
लोला मोंटेज़ का जन्म 17 फरवरी 1821 को आयरलैंड के काउंटी स्लिगो में हुआ था। पिता की मौत के बाद कम उम्र में ही वह भारत आ गईं, लेकिन जल्द ही उसे शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। बचपन से ही वह विद्रोही स्वभाव की थीं।
16 साल की उम्र में लोला मोंटेज़ को एक बूढ़े अमीर व्यक्ति से विवाह करने को मजबूर किया जा रहा था, परंतु उन्होंने लेफ्टिनेंट थॉमस जेम्स से प्रेम विवाह किया और भाग निकलीं। उसके पति की नियुक्ति शिमला में थी। साल 1839 में वह पति के पास शिमला आ गई। एलिज़ा गिल्बर्ट का विवाह अधिक समय नहीं टिक पाया।
शिमला से म्यूनिख तक : इश्क, राजनीति और विद्रोह
शिमला से इंगलैंड लौटते समय लोला मोंटेज़ की मुलाकात चार्ल्स लेनोक्स से हुई। उसका यह रिश्ता इतना खुल्लमखुल्ला था कि उसके पति ने 1842 में उसे तलाक़ दे दिया। इसके बाद वह यूरोप की रंगीनियों में डूब गईं। इतिहासकार माइकल कैनन के मुताबिक सितंबर 1855 में मेलबर्न के थिएटर रॉयल में लोला मोंटेज़ अपना कामुक स्पाइडर डांस प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने अपनी स्कर्ट इतनी ऊंची कर दी कि दर्शक देख सकते थे कि उन्होंने कोई अंतर्वस्त्र नहीं पहना है।
वह फ़्रांज़ लिज़्ट, एलेक्ज़ेंडर ड्यूमा और फिर म्यूनिख में बवेरिया के राजा लुडविग की रखैल बनीं। राजा ने उसे ‘काउंटेस ऑफ लैंड्सफेल्ड’ की उपाधि दे दी। इसको लेकर इतना विरोध हुआ कि राजा को त्यागपत्र देना पड़ा।
में न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में ली आखिरी सांस
अपने स्पाइडर डांस की थिरकन से रसिकों को सम्मोहित करने की कला में माहिर लोला मोंटेज़ साल 1851 में अमेरिका पहुंचीं। उसने फिर नर्तकी के रूप में सफलता पाई, लेकिन यह सफलता भी लंबी नहीं चली।
अपने रूप, विद्रोह और प्रेम के ज़रिए दुनिया को चौंका देने वाली लोला मोंटेज़ कोई साधारण महिला नहीं थी। लेकिन जीवन के आखिरी दिनों में वे अकेली थी। सिफलिस के असर से उनका शरीर कमजोर होता गया। 39 की उम्र में 17 जनवरी 1861 में न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में उन्होंने आखिरी सांस ली।
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Jyoti maurya

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