कौन थीं शिमला में जन्मी ब्रिटिश लेखिका मारग्रेट मैरी के, जो कहती थी ‘भारत मेरे खून में है’

कौन थीं शिमला में जन्मी ब्रिटिश लेखिका मारग्रेट मैरी के, जो कहती थी ‘भारत मेरे खून में है’
कौन थीं शिमला में जन्मी ब्रिटिश लेखिका मारग्रेट मैरी के, जो कहती थी ‘भारत मेरे खून में है’
हिमाचल बिजनेस/ शिमला
शिमला में पैदा हुई ब्रिटिश लेखिका मारग्रेट मैरी के (एमएम के) की आत्मा और कहानियां भारत की मिट्टी से जुड़ी रहीं। उनके लिए लेखन केवल शब्द नहीं, बल्कि समय, संस्कृति और भावना का जीवंत दस्तावेज़ रहे। एमएम के) एक ऐसी लेखिका थीं, जिनकी कहानियां इतिहास, प्रेम और रोमांच का अद्भुत संगम हैं। वे शिमला में पैदा हुई और पहाड़ में उनका बचपन बीता। कालांतर में दुनिया भर की यात्राएं कर लेखन के प्रति समर्पित हो गईं। लेखिका का मानना था, ‘भारत मेरे खून में है’। उनका उपन्यास ‘द फार पॉविलियन’ बहुत मशहूर रहा। इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में एक ऐसा भारत है, जो सुंदर है तथा रहस्यमय और भावनात्मक रूप से गूंजता है।
1978 में लिखा ‘द फार पॉविलियन’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, ब्रिटिश राज और एक अमर प्रेम कहानी को जोड़ता है। बेस्टसेलर बनने के साथ इस उपन्यास पर टीवी सीरीज़ भी बनाई गई। एमएम के लेखन में भारत के इतिहास की गहराई, मानव भावनाओं की सूक्ष्मता और राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तनों की झलक मिलती है। वे सिर्फ कहानी नहीं कहती हैं, अपने अनुभव को जीवंत बनाती हैं।
बच्चों के लिए कहानियां लिखने से शुरुआत
ब्रिटिश राज के दौरान 1 अगस्त 1908 को शिमला में जन्मी एमएम के का बचपन भारत के पहाड़ों और राजमहलों में बीता। उनके पिता सर सेल्विन के ब्रिटिश इंडियन सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी थे। एमएम के ने भारत को न केवल करीब से देखा, बल्कि महसूस किया, जिया और अपने अनुभवों को अपने लेखन में उकेरा।
एमएम. के ने अपने लेखन की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के समय बच्चों की कहानियों और रहस्यमायी उपन्यासों के लेखन से की थी। शुरू में उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने खूब शोध किया और ऐतिहासिक घटनाओं को आत्मसात करके कथानकों में पिरोया।
वैश्विक दृष्टिकोण और विविधता का मेल
एमएम. के ने गॉडफ्रे जॉन से शादी कर कई देशों में यात्रा की। इन अनुभवों ने उनकी कहानियों में वैश्विक दृष्टिकोण और विविधता जोड़ी। उनके यात्रा संस्मरण’ द सन इन द मॉर्निंग’, ‘गोल्डन आफ्टरनून’ और ‘एंचेंटेड इवनिंग’ में उनके जीवन की झलक देखी जा सकती है।
एमएम. के 90 वर्ष की आयु तक सक्रिय लेखन करती रहीं। 29 जनवरी 2004 को इस नश्वर संसार को छोड़ने से पहले उन्होंने बड़े स्तर पर इतिहास और रोमांच से जुड़ी कहानियां कहने के लिए महिला लेखकों की राह आसान की।
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Jyoti maurya

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