World Music Day जिनके संगीत निर्देशन में रफी, आशा, महेंद्र कपूर ने गाये हिट नगमे, हिमाचल के उस संगीतकार लच्छी राम ‘तोमर’ ने एचएमवी में की गायक की नौकरी, फिर 20 से ज्यादा हिंदी फिल्मों में दिया संगीत
विनोद भावुक/ शिमला
मुहम्मद रफी के सदाबहार नग्मों ‘तूं शोख कली मैं मस्त पवन, तूं शम्मा ए वफा मैं परवाना’ या फिर ‘ढलती जाए रात, कह दे दिल की बात’ को आपने कभी न कभी जरूर सुना होगा, लेकिन इस गीतों को मेलोडी संगीत में ढालने वाले संगीतकार के बारे में शायद ही आपको कुछ पता हो। शायद ही आप लक्ष्छी राम तोमर के बारे में जानते होंगे, जो माया नगरी में लच्छी राम ‘तमर’ के नाम से मशहूर रहे हैं और अपने दौर के नामी गायकों ने उनके संगीत निर्देशन में काम किया। रफी, महेंद्र कपूर, आशा भौसले, सुधा मल्होत्रा, गीता दत्त जैसे उस दौर के गायक गायिकों के काम करने वाले लच्छी राम ने मुंबई फिल्म उद्योग में 20 से ज्यादा फिल्मों को अपने संगीत दिया। यह दुखद ही है कि हिमाचल प्रदेश में लच्छी राम के बारे में कोई ज्यादा नहीं जानता। World Music Day पर शोहरत की बुलंदियों पर लच्छी राम तोमर की गुमनामी की कहानी।
एचएमवी के लिए गाये गीत
लच्छी राम का जन्म हिमाचल प्रदेश की कुठार रियासत में हुआ था। उनके पिता राणा साहेब जगजीत चंद्र की अदालत में एक कर्मचारी थे। छोटी सी उम्र में लच्छी राम के सिर से पिता का साया उठ गया। संगीत प्रेमी राणा साहब ने लच्छी राम को संगीत में प्रशिक्षित किया। रियसात के संगीतकार नूर खान ने उन्हें संगीत की शिक्षा दी। 20-21 साल की उम्र में वे दिल्ली आ गए और उन्हें उस दौर में संगीत की सबसे नामी कंपनी एचएमवी में नौकरी मिल गई। अपने शुरूआती दौर में उन्होंने कंपनी के रिकॉर्डस के लिए कई गाने गाए। ‘शॉरी पिक्चर्स’ के अजीज कश्मीरी संगीतकार की तलाश में दिल्ली आए तो उनकी मुलाकात लच्छी राम से हुई। लच्छी राम को फिल्मी दुनिया में इंट्रोडयूस का श्रेय उन्हें ही जाता है।
बीस फिल्मों दिया संगीत
लच्छी राम का कैरियर चंपा 19 45 में ‘चंपा’ फिल्म से शुरू हुआ और 1964 तक संगीतकार के रूप में वे मुंबई फिल्म उद्योग में सक्रीय रहे। 1964 में संीतकार के रूप में ‘मैं सुहागन हूं’ उनकी सबसे हिंट फिल्म रही। इसके बाद उनके संगीत कैरियर का भी अंत हो गया। उन्होंने लगभग बीस फिल्मों के लिए संगीत दिया। उनकी संगतीबद्व फिल्म में 1945 में आई चंपा, 1946 में ‘बदनाम, ‘कहां गए’, ‘शालीमार’और ‘खुशनसीब’, 1947 में अर्सी, ‘डायरेक्टर’और ‘मोहिनी’, 1948 में ‘बिरहन’, 1950 में ‘गुरू दक्षिणा’ ओर ‘मधुबाला’ 1952 में ‘महारानी झांसी’, 1954 में ‘अमीर ’व ‘शहीदे आजम भगत सिंह’, 1956 ‘दो शहजादे’ व ‘गुरू घंटाल’, 1959 में ‘हजार परियां’ 1961 में ‘रजिया सुलताना’ और 1964 में ‘मैं सुहागन हूं’ शामिल हैं।
अमर गीतों में जिंदा लच्छी राम
लच्छी राम के 1950 से पहले के गाये अधिकतर गीत उपलब्ध नहीं हैं। ‘रजिया सुलताना’ और ‘मैं सुहागिन हूं’ फिल्मों के सुपह हिट गीतों की वजह से जरूर लक्ष्छी राम को संगीत की दुनिया की समझ रखने वाले अच्छी तरह से जानते हैं। कैफी आजमी का लिखा और आशा भौसले और रफी का गाया ‘तूं शोख कली मैं मस्त पवन, तूं शम्मा ए वफा मैं परवाना’ , सफी का गाया ‘सब जवान सब हसीं, कोई तुमसा नहीं’, आशा भौसले और रफी का स्वरबद्व ‘गोरी तेरे नैन कजरारे’, आनंद बख्शी का लिखा और आशा और रफी का गाया ‘ढलती जाए रात, कह दे दिल की बात’ जैसे कई अमर गीतों में लच्छी राम आज भी जिंदा हैं।