शनिदेव : महाकाल के खंभों पर क्यों बांधते कच्चा धागा?
हिमाचल बिजनेस/ बैजनाथ
कच्चे धागे से शनिदेव के साथ पक्का रिश्ता बांध लीजिए, क्योंकि यही कच्चा धागा आपको कलयुग के देवता शनि का वरदान दिला सकता है।
कांगड़ा जिला के बैजनाथ में स्थित महाकाल मंदिर में शनिदेव का ऐसा मंदिर है, जहां खंभों पर कच्चा धागा बांध दिया जाए तो न केलव शनि का प्रकोप कट जाता है, बल्कि विपरीत ग्रह स्थिति से भी मुक्ति मिल जाती है। आइये, आज शनिदेव के मंदिर में चलते हैं।
मनोकामना पूरी करने वाले खंभे
महाकाल मंदिर में गोल-गोल खंभों के इर्द- गिर्द घूमती है भक्तों की दुनिया। इनमें ही वो भरोसा और चमत्कार दिखता है, जिसका अनुभव करने के लिए भक्त न तो समय की परवाह करते हैं और न ही दूरी की।
महाकाल मंदिर में लगे खंभे कोई मामूली खंभे नहीं हैं। ये मुराद पूरी करने वाले खंभे हैं। ये आस्था को परवान चढ़ाने वाले खंभे हैं। ये चमत्कार दिखाने वाले खंभे हैं।
शनिदेव के मंदिर के ये 12 खंभे भक्तों को शनिदेव का आशीर्वाद दिलाते हैं और भक्तों के हर दुख का निवारण करते हैं।
मंदिर में है हर राशि का खंभा
बैजनाथ के महाकाल गांव में बने शनिदेव के मंदिर में हर राशि का एक खंभा है। कहते हैं अगर भक्त अपनी राशि के खंभे पर कच्चा धागा बांधकर कामना पूरी करने का वर मांगते हैं तो शनिदेव उन्हें कभी निराश नहीं करते।
चाहे साढ़ेसाती हो या ढैय्या, अष्टम शनि का संकट हो या कंटक शनि के कांटे जीवन में चुभ रहे हों, भक्तों के जीवन का हर दुख यहां आकर सुख में बदल जाता है।
शनि की इच्छा यहां हुई पूरी
इस मंदिर में आकर शनि ने महाकाल की आराधना कर उनसे शक्तिशाली होने का वरदान पाया था। यहीं पर शनिदेव की इच्छा पूरी हुई थी, इसलिए यहां शनिदेव भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं। भक्तों को यकीन है कि मंदिर में पूजा करने और शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाने से सात सप्ताह में साढ़ेसाती से छुटकारा मिल जाता है।
यही नहीं, ग्रहों की टेढ़ी चाल से भी मुक्ति मिलती है। ग्रह की टेढ़ी चाल से छुटकारा पाना हो उस राशि के दिन आकर कच्चा धागा बांधना होता है, फिर शनि के साथ ग्रहों की बिगड़ी चाल का भी निवारण हो जाता है।
मंदिर के प्रति लोगों में आस्था
कहते हैं यहां सरसों का तेल और दाल चढ़ाने से शनिदेव जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। भक्त यहां आकर एक तरफ जहां शिव से सुख समृद्धि का वरदान मांगते हैं, वहीं शनि देव से कष्टों से मुक्ति का आशीर्वाद पाते हैं।
शिव और शनि का रिश्ता
कहते हैं कि शनि की कृपा राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है, लेकिन सर्वशक्तिमान शनिदेव भी एक बार मजबूर हो गए थे, उनके अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे थे।
महाकाल का ये मंदिर शनि की व्यथा सुनाता है, उनकी मजबूरी की कहानी सुनाता है। ये मंदिर न केवल उस घटना का गवाह है, बल्कि शिव और शनि के अटूट रिश्ते का आधार भी यही मंदिर है।
शनि की व्यथा सुनिए
शनिदेव सूर्य और छाया के पुत्र हैं, लेकिन रंग-रूप बिल्कुल अलग। सूर्य एकदम चमकते- दमकते और शनि तवे जैसे काले और उसपर उनका क्रोधी स्वभाव।
कहते हैं सूर्यदेव को संदेह हो गया कि क्या वाकई शनि उनके पुत्र हैं। पति के इस आरोप से छाया व्यथित हो उठीं। सूर्यदेव ने पुत्र सहित छाया का त्याग कर दिया।
मां ने सुनाई बाप की कहानी
कहते हैं बड़े होने पर जब शनि ने मां से अपने पिता के बारे में पूछा तो छाया ने पूरी कहानी बताई। शनि के लिए ये एक ऐसी मुश्किल की घड़ी थी, जिसका समाधान करना उनके जीवन का सबसे बड़ा मकसद बन गया।
कहते हैं जब शनिदेव ने इसी महाकाल मंदिर में आकर शिव की आराधना की और घनघोर तप किया। शनि की पूजा और आंसुओं ने महाकाल को पिघला दिया।
महाकाल के आशीर्वाद ने शनिदेव को इतना शक्तिशाली बना दिया कि इंसान क्या देवता भी उनसे खौफ खाते हैं। महाकाल ने सूर्य देव को भी ये विश्वास दिला दिया कि शनि उन्हीं के पुत्र हैं।
शिव – शनि की एकसाथ पूजा
उसी दिन से इस धाम में शिव और शनिदेव की एक साथ पूजा की जाती है। पहले शनिदेव भगवान शिव के साथ ही विराजते थे, लेकिन बाद में उनके मंदिर को अलग बनवा दिया गया। इस मंदिर में भक्त पहले महाकाल के दशर्न कर उनसे आशीर्वाद लेते हैं फिर शनिदेव की आराधना की जाती है। यहां आने के बाद कोई खाली हाथ नहीं जाता है।
स्थानीय लोगों के अलावा दूर- दूर से लोग यहां पहुंचते हैं, खासकर शनिवार को। सावन के महीने में इस मंदिर में ख़ासी चहल- पहल रहती है।
बैजनाथ के पर्यटन पर शनिदेव मेहरबान
ऐतिहासिक महाकाल मंदिर ऐतिहासिक नगर बैजनाथ से करीब छह किलोमीटर दूर बैजनाथ लड़भड़ोल वाया चौबीन रोड़ पर स्थित है। मंदिर परिसर में शिवभक्तों का खासी भीड़ जुटती है। मंदिर परिसर में स्थित शनिदेव मंदिर के प्रति भी शिवभक्त गहरी आस्था रखते हैं।
ऐतिहासिक शिव मंदिर बैजनाथ के दर्शन करने आने वाले शिवभक्त महाकाल मंदिर में जाकर महाकाल और शनिदेव दोनों से अशीष लेना कतई नहीं भूलते हैं। मंदिर में पुरातन मूर्तियां और मंदिर का शिल्प निर्माण अपने काल की वास्तुकला की गवाही देते हैं। बैजनाथ के पर्यटन में इस मंदिर की खास भूमिका है।
मंदिर में विभिन्न धार्मिक उत्सवों के दौरान मेले लगते हैं और दूर- दूर से शिवभक्त यहां शीश नवाने आते हैं। ग्रहों की बिगड़ी चाल से परेशान लोग भी इस मंदिर में आकर मन्नतें मांगते हैं।
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